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चांद मामा और शरद पूर्णिमा के चांद में रचाया रास

पत्रकार की कलम

वह आज भी वही है, आपका चंदा मामा! और, रहेगा सदियों तक…

 चंदा मामा चाँद शरद पूर्णिमा

– होमेन्द्र देशमुख, एबीपी न्यूज़ भोपाल

चंदा के टिकली चंदैनी के फूल्ली पहिर के मैं आहूं
तोरे दुआरी-तोरे अटारी मोरे राजा रे…..
तैं मोर दियना अउ मैं तोर बाती
तोर दुआरी तोर दुआरी मोरे राजा रे…

चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सी तारा….
नही भूलेगा मेरी जान
ये अवारा, हो अवारा…

ये तो कल्पनाएं हैं, फैंटेसी है !

लेकिन विज्ञान के लिए सौरमंडल का एक रहस्यमय उपग्रह है “चांद ” !

जो 63 अन्य उपग्रहों में वजन के क्रम में चौथा है जो आफ्रीका की क्षेत्रफल के बराबर का है। अमेरिका ने 1950 में चांद को परमाणु बम से उड़ाने की लगभग पूरी तैयारी कर ली थी। पर विडंबना देखिये, वहीं के एक सैनिक ने ही चांद पर 21 जुलाई 1969 को पहला कदम रखा…

अगर अमेरिका चांद यानि हमारे प्यारे चंदा-मामा को नेस्तनाबूद कर देता तो पृथ्वी पर दिन महज 6 घंटे का हो जाता। चांद का आकार का अनुमान आप ऐसे लगा सकते हैं कि 49 चांद पृथ्वी मे समा सकते हैं। चांद पर गुरूत्वाकर्षण कम है। पर एक बार भारतीय वैज्ञानिक ने एक गेंद फेंकी वह 800 मीटर जाकर गिरा। नील एडम आर्म स्ट्रांग ने जब पहली बार कदम रखा तो अपोलो 2 यान के सीढ़ी से जरा जोर से चांद की सतह पर कूद पड़े तो उनके पैर के निशान पड़े। वह निशान आज भी चांद की सतह पर है और चूंकि चांद पल हवा नही है इसलिए ये निशान आने वाले लाखों साल तक यूं ही बना रहेगा। चांद पर पानी है यह तथ्य भारत के खोजी दल ने प्रूफ किया। चांद पर संरचना के कारण दाग का आभास होता है जो प्राकृतिक (नैचुरल) है, पर ये दाग मिटेंगे नही बल्कि साल दर साल बढ़ने की आशंका भी जतायी जा चुकी है।

और भी बहुत कुछ है चांद की कहानी पर…
पर ‘चांद’ खुद हमारी दादी नानी की कई कहानियों में सदियों से है और सदियों तक रहेंगी। किसी के लिए प्रियतम चांद, बैरन चांद, तो किसी के लिए ईद का चांद। बहुत लोगों ने चांद की बाते की होंगी। कभी महसूस करिये बहुत करीब पाएंगे। उन्ही कहानियों के पात्र जैसा। चांदनी रात में, आंगन के बिछौने पर वैसे ही रोशनी गिराती दिखती है जैसे मां ने अपने हाथों से अभी-अभी मक्खन निकालकर तस्तरी मे फैलाया है। खेत की झोपड़ी में चांद की रोशनी किसान के फसलों को आशीर्वाद बरसाती दिखती है।

चांद आज भी वही है, कहानी के हीरो, किस्सों के केंद्र, शीतल, सुकुन, अमृत बरसाने वाली। बिलकुल नही बदला। पर हमारी अनुभूति बदल रही है। सुविधाओं-सम्पन्नता और बिजली की चकाचौंध में चांद को अहसासने का समय हमारे पास नही है। घर में लाइट जाती है तो इनवर्टर शुरू हो जाता है। बाहर निकलें तो गाड़ी और शहर की कृत्रिम रौशनी ने चांद को एक लट्टू जैसा रूप दे दिया है।

छत की मुंडेर पर, छप्पर की छेद से, रोशनदान और झरोखों पर चांद अब दिखता नहीं। क्योंकि हमारी बिजली की चकाचौंध ने उस दर्पण से उजले अहसास को घुप्प बना दिया है। कभी छत पर बिजली की रौशनी बंद कर, दो मिनट उस चांद को निहार कर देखिये वह अभी भी उसी नभ से, आपके जीवन को संचार दे रही है। रात के मुसाफिर, जरा गाड़ी की हेडलाइट बंद कर सड़क पर पेड़ के पत्तों के बीच से आती चांद की दुआओं जैसी धवल रोशनी को अपने हथेली और चेहरे पर ले कर देखिए। वह आज भी वही है, आपका चंदा मामा ! और, रहेगा सदियों तक..!!!

प्रणामी धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार अंतरराष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव में एक लाख श्रद्धालु शामिल हुये
राज जी की निकली सवारी
पन्ना जिले प्रणामी संप्रदाय का सबसे बड़ा तीर्थ है इस मुक्तिधाम में देश विदेश के लोग आते हैं इस संप्रदाय का सबसे बड़ा तीर्थ होने के कारण और इस धर्म के संस्थापक महामति प्राणनाथ जी को पन्ना धाम से ही सिद्धि प्राप्त हुई थी और उन्होंने रास मंडल में रास रचाया था उसी क्रम में शरद पूर्णिमा के दिन सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन आयोजित किया गया जिसमें बंगला साहब से निकल कर आ रात राज जी की सवारी निकली सखियां सोलह श्रृंगार कर रास मंडल में राज्य के पहुंचते ही सुंदर साथ ही अन्य भाइयों के साथ झूम उठे इस घर में गीता के श्लोक और कुरान की आयतें एक साथ पड़ी जाती है सभी के लोगों में प्रेम का संचार करने के लिए 10 दिन तक चलने वाले इस आयोजन में रात भर रास ना जा जाता है और सखिया सोलह श्रृंगार कर राज्य के सामने रासराज नाचती पुजारी कहते हैं कि समाज को जोड़ने वाला यह धर्म है जिसमें जिसमें सभी लोग एक साथ रास नाचते हैं
पुजारी कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज मंडल में जो रास ना जा था वही अक्षर आदित परब्रह्म ने यहां रास नचाया और उसी की अनुभूति करने के लिए रास नाचते हैं और जो प्रणाम करने की संस्कृति है वही प्रणामी धर्म है
राज जी को प्रसन्न करने के लिए सखियां सोलह श्रृंगार कर दी और सर रास मंडल में रात होती ही पहुंच जाती है और रास नाचती के 30 से परम आनंद की अनुभूति होती है

धामी और प्रणामी संप्रदाय के लोगों को वर्ष भर शरद पूर्णिमा का इंतजार रहता है जैसे ही यह त्यौहार आता सभी तैयारियां कर रास नाचने लगते हैं
प्रणामी संप्रदाय के लोग पूरे देश सहित नेपाल भूटान अमेरिका सहित कई देशों में बसे हुए हैं और इस मौके पर सभी लोग आते हैं इस अंतरराष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव में 400 पुराण का पाठ किया गया और बाहर से आए सुंदर साथिया नी अनुयायियों ने लंगर और सेवा का आयोजन भी किया प्रशासन ने इसके लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए और कई जिलों की पुलिस लगाई गई है यह महोत्सव 5 दिन तक चलेगा

कलेही मां की कृपा से हर मनोरथ होते हैं पूर्ण
कलेही माता के दरबार में उमड़ा जनसैलाब

(शिवकुमार त्रिपाठी)
नवरात्र में हर देवी के दरबार में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है लेकिन पवई में मां कलेही का दरबार निराला है यहां सुबह से ही भक्तों की भीड़ जमा हो जाती है और जो भी मनोकामनाएं मानी जाती सभी पूर्ण होती हैं अद्भुत इस स्थान का धार्मिक और पुरातन महत्व तो है ही ऐतिहासिक महत्व भी है और कई दंत कथाएं जुड़ी हुई है जिसमें कहते हैं कि कलेही माता पहले पर्वत के ऊपर विराजित ही थी और भक्तों की सहूलियत के लिए वे नीचे चली आई मां,, तभी से पतने नदी के किनारे मां की पूजा होती है जाने इस अदभुत दरबार और महत्व को ,,,

विंध्य पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसे पन्ना जिले की पवई का नाम जुबान पर आता है, तो जेहन में दिव्य शक्ति मां कलेही का दिव्य दर्शन सामने आता है। वैसे तो शक्ति स्वरूपा नारायणी के अनेक रूप है, दुर्गा सप्तशती में वर्णित नव-दैवियों में मां कलेही सप्तम देवी कालरात्रि ही हैं। अष्टभुजाओं में शंख, चक्र, गदा, तलवार तथा त्रिशूल उनके आठों हाथों में है। पैर के नीचे भगवान शिव हैं, उनके दायं भाग में हनुमान जी तथा बायं भाग में बटुक भैरव विराजमान हैं। मां हाथ में भाला लिये महिषासुर का वध कर रही हैं। यह विलक्षण प्रतिमा साढ़े तेरह सौ वर्ष पुरानी है, जिसकी स्थापना विक्रम संवत् सात सौ में हुई थी।

पर्वत से नीचे आने की दंत कथा
कहते हैं किन नगायच परिवार की एक आस्था वन महिला प्रतिदिन माता के दरबार में पूजा करने जाती थी जब वह बुजुर्ग हो गई और शरीर कमजोर होने लगा तो उन्होंने 1 दिन माता से बने कि कि मैं अब प्रतिदिन पूजा करने इतने ऊंचे पर्वत पर नहीं आ सकती तब माता ने कहा कि तुम चलो मैं आती हूं लेकिन पीछे मत देखना उस बुजुर्ग महिला ने आगे आगे चलना शुरू किया और पीछे मां कलेही पैदल चली आ रही थी जब नदी के किनारे पहुंची तो अविश्वास की भावना पैदा हुई और उस बुजुर्ग महिला ने पीछे देख लिया और जैसे ही दृष्टि पड़ी मां कलेही वही स्थिर हो गई फिर उस बुजुर्ग महिला ने आगे ले जाने की कोशिश की पर माता नहीं बड़ी तभी से इस स्थान पर यह मंदिर बना है और वही पूजा-अर्चना हो रही है और जब तक वह बुजुर्ग जीवित रही प्रतिदिन माता के दरबार में जा कर पूजा करती थी

बढोलिया परिवार है पुजारी
यूं तो सभी मंदिरों में प्राचीन काल से ही ब्राम्हण पुजारी होते रहे हैं और आज भी ब्राह्मण कुल में जन्मे लोग ही मंदिरों में पुजारी है पर इस कलेही माता मंदिर में बढोलिया परिवार कई पीढ़ियों से लगातार पूजा कर रहा है वंशानुगत इसी परिवार के लोग यहां प्रधान पुजारी होते हैं पवई निवासी बढोलिया परिवार आज भी यहां का पुजारी है बड़ी लगन और श्रद्धा के साथ पूजा करते और कराते हैं और सभी की आस्था इस मंदिर में है

पांच सौ वर्ष पुराना है यहां का मेला
मां कलेही पवई नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर पतने नदी के तट पर विराजमान है, इस स्थान की छटा बड़ी मनोरम है। वैसे तो यहां वर्ष भर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है, चैत्र नवरात्र में तो यहां विशाल मेला लगता है, जिसका प्रमाण तकरीबन पांच सौ वर्ष पुराना है। मेले में दूर-दूर से व्यापार करने के लिए व्यवसायी आते हैं। प्राचीन समय से अनाज, मसालों एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं का क्रय-विक्रय भी इसी मेले के माध्यम से होता रहा है। यहां सम्पूर्ण भारत के सभी अंचलों बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड, मालवा, निमाड़ आदि से मां के दर्शनों के लिए लोग आते हैं। इस तथ्य का प्रमाण सिद्व स्थल श्री हनुमान भाटा की सीढ़ियां है, जिस पर उनके नाम व पते आज भी अंकित है।

अखण्ड ज्योति की भी मान्यता
लोक मान्यताओं के अनुसार मां शारदा (मैहर), मां पद्मावती (पन्ना) एवं मां कलेही (पवई) की प्रतिमायें हवा में नब्बे अंश का कोण बनाती है तथा हवा में भी इन सभी मंदिरो की आपस मे दूरियां लगभग साठ किमी है। धन-धान्य की परिपूर्णता और शक्ति के प्रतीक के रूप में मां कलेही की उपासना सदैव प्रचलित रही है। मां कलेही का मुखमण्डल सदैव विशेष चमक बिखेरता है। यह अद्वितीय पाषाण प्रतिमा भारतीय शिल्पकला का अनूठा उदाहरण है। नवरात्र के नव दिवस मां कलेही के सामने अखण्ड ज्योति भी इसी मान्यता के साथ प्रज्ज्वलित की जाती है, ताकि मां की साधना मे कोई विघ्न न आने पाये। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना मां कलेही सुनती है एवं पूर्ण करती है।

भक्त अपनी मन्नते लेकर आते हैं यहां
प्राचीन समय से अनवरत चली आ रही मां कलेही में भक्तों की आस्था आज भी कायम है। इस तथ्य का प्रमाण मंदिर परिक्रमा में लालचुनरी में बंधे हुये हजारों श्रीफल है। यहां भक्त अपनी मन्नते लेकर आते हैं और सच्चे मन से मां कलेही की आराधना करके श्रीफल को लालचुनरी में लपेट कर बांध देते हैं तथा मन्नत पूर्ण होने पर श्रीफल को छोड़कर मनोकामना पूर्ण होने का शुभ संकेत देते हैं। नवरात्र में यहां कन्या भोज कराने वालों की मनोकामनायें अवश्य पूर्ण होती हैं। श्रद्धालु यदि सच्ची श्रद्धा एवं भाव से मां कलेही की परिक्रमा पूर्ण करता है तो भी मां भक्त की पुकार सुनती है। भोर होते ही मां के भक्त नग्न पैर मंदिर में जल, फल, फूल, पत्र एवं प्रसाद लेकर पहुंचते हैं।

जवारों का विशेष महत्व
नवरात्र में यहां जवारों का विशेष महत्व है। एक समय तो मैहर की शारदा माता व पन्ना की फूला माता समेत तकरीबन 150 स्थानों के जवारे यहां आते थे। भक्त अपने सिर पर जवारों को रखकर ढोल, मंजीरों की थाप पर देवी भगतों का गायन कर हेरत अंगेज कारनामे दिखाते हैं। वे बानो एवं त्रिशूल के द्वारा जीभ एवं गले को छेदते हैं। जवारों की यह प्राचीनतम परम्परा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है जिसे पुर्नजीवित करने का अथक प्रयास मां कलेही धर्माथ समिति द्वारा किया जा रहा है। मंदिर परिसर में मां कलेही दरवार के साथ-साथ संकट मोचन श्री हनुमान जी महाराज की छ: रूद्री प्रतिमा है, साथ ही रूद्र अर्थात शिव भी शिव लिंग के रूप में विराजमान है, ऐसा शिव लिंग भारत वर्ष में अन्यत्र देखने को नही मिलता। पर्वत की तलहटी में 27 फिट के बाबा कैलाशी की विशाल प्रतिमा है, जिनकी जटाओं से गंगा बहती है। मंदिर तथा आस-पास के क्षेत्र में चन्देल कालीन मूर्तियों के अवशेष बिखरे पड़े हैं, जिन्हें सहेजने एवं संवारने की आवश्यकता है।

पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल
पुरातत्व महत्व के स्थलों और प्राचीनतम प्रतिमाओं की सुरक्षा व उनके रख-रखाव का दायित्व समाज का होता है। सिद्ध स्थल श्री हनुमान भाटा एवं मां कलेही धाम हिन्दू धर्म की महान विरासत है, इसे सहेजकर रखना सम्पूर्ण समाज की जिम्मेदारी है। यहां मौजूद प्रतिमायें बेशकीमती हैं, समय-समय पर इनका जीर्णोद्धार होना चाहिए यह मानव सभ्यता के अमूल्य धरोहर है। मां कलेही मंदिर पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां देशी-विदेशी पर्यटक आकर शोध कर सकते हैं। मां कलेही मंदिर मप्र पर्यटन से जुड़ने के बाद पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है, जहां की खूबसूरत वादियां, पहाड़ों की चोटियां, हरे-भरे वृक्ष, नदी की कल-कल ध्वनि लोगों को बरबस ही अपने और आकर्षित करती है। मां कलेही परिक्षेत्र में ईकोटूरिज्म की गतिविधियों का संचालन किया जा सकता है। बाहर से आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के यहां आने से स्थानीय लोगो को रोजगार के साथ आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक लाभ भी हो सकता है।

धर्मार्थ समिति के प्रयासों से हुआ और बेहतर
देश-दुनिया के साथ यहां की व्यापक जानकारी देने के लिए मां कलेही धर्मार्थ समिति प्रयासरत है एवं पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के साथ ही पुरातात्विक धरोहर के रूप में जमीनी स्तर पर संरक्षित करने की मांग कर रही है। मां की सेवा में समर्पित, मां कलेही धर्मार्थ समिति:- मां के आशीर्वाद, जन सहयोग एवं मां कलेही धर्मार्थ समिति के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि यहां विकास एवं जीर्णोद्धार का कार्य तीव्रगति से चल रहा है। धर्मार्थ समिति के प्रयासों एवं जनसहयोग से यहां शुद्ध पेयजल व्यवस्था, परिसर में ठहरने के लिए धर्मशालायें, कूप निर्माण, आनंद विहार गार्डन, 27 फिट की विषाल शिव प्रतिमा का निर्माण, नव दिवसीय नि:शुल्क भण्डारा, साफ सफाई एवं वृक्षारोपण के कार्य कराये गये है। जन सहयोग से प्राप्त होने वाली वार्षिक आय का लेखा-जोखा भी विजयादशमी के सांस्कृतिक मंच के माध्यम से पूर्ण पारदर्षिता के साथ प्रस्तुत किया जाता है। विशेष:- पंचमी की विशेष आरती, अष्टमी की महाआरती, केश मुण्डन संस्कार की व्यवस्था, भण्डारे में नि:शुल्क भोजन व्यवस्था एवं शुद्ध पेय जल व्यवस्था।

पन्ना देश दुनिया में हीरो के लिए जितना प्रसिद्ध है उससे भी कहीं ज्यादा सांस्कृतिक विरासत के लिए भी मशहूर है भगवान राम के चरण यहां पड़े थे आदि शक्ति पीठ मां पद्मावती देवी का स्थान भी पन्ना में है जहां हर भक्तों की मनोकामना को पूर्ण होती ही है बुंदेलखंड के लोग पन्ना की पद्मावती देवी को बड़ी देवी के नाम से जानते हैं और इनका स्थान मैहर की शारदा माता जैसा ही है लोग बड़ी देवी को पन्ना की शारदा माता मानते हैं मां के दर्शन करने पूरे बुंदेलखंड से लोग आते हैं
। जिसे लेकर मान्यता है कि यहां जो भी मनोकामना की जाती है उसे मां भगवती जरूर पूरा करती है। पन्ना में मां सती के पदम यानि पैर गिरे थे और इसीलिए इस शक्तिपीठ की नाम पद्मावती शक्तिपीठ पड़ा।

यहां मां का जो प्राचीन मंदिर है उसे लेकर मान्यता है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र में पद्मावत नाम के राजा हुए थे जो शक्ति के उपासक थे। उन्होंने अपनी आराध्य देवी मां दुर्गा को पद्मावती नाम से इस प्राचीन मंदिर में स्थापित किया। कालांतर में इस क्षेत्र का नाम इसी मंदिर के कारण पद्मावतीपुरी हुआ, जो बाद में परना और वर्तमान में पन्ना के नाम से पहचाना जाता है। पद्मावती देवी का उल्लेख भविष्य पुराण तथा विष्णु धर्मोत्तर पुराण में भी है। ये मंदिर गौण नरेशों का आराध्यस्थल भी था।

पद्मावती शक्तिपीठ के प्रति भक्तों की असीम श्रद्धा और विश्वास है। जानकार कहते हैं कि भक्त इसलिए यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं क्योंकि यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।

मंदिर की खास बातें

– पन्ना में किलकिला नदी के पास मां का यह प्राचीन देवी मंदिर है। इस मंदिर को स्थानीय बोली मे बड़ी देवन कहा जाता है।
– मंदिर के पुजारी राम कुमार शुक्ला के अनुसार, नवरात्रि में यहां बड़ा आयोजन होता है और देशभर से भक्त आते हैं।
– इस दौरान मां के दरबार में क्षेत्रीय बुंदेली भजन गीत गाए जाते है। मान्यता है कि देवी पद्मावती के आशीर्वाद के कारण ही पन्ना इतना समृद्ध है।

यह है मां सती के टुकड़े-टुकड़े होने की कहानी

मां सती भगवान शिव की पहली पत्नी थी। वह राजा दक्ष की बेटी थी जिसने भगवान शिव को अपनी पुत्री से शादी के लिए मना कर दिया था। उनके इंकार के बाद भी मां सती ने भगवान शिव से शादी की। एक दिन दक्ष राजा ने बड़े यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने सभी ऋषियों और देवताओ को बुलाया लेकिन भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया क्योंकि वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे।

मां सती ये अपमान नहीं सहन नहीं कर पायी। जब वे पिता से इसका उत्तर जानने यज्ञ स्थल पहुंची तो पिता ने उनका अपमान किया भगवान शिव को भला बुरा कहा। मां सती अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पायी और उन्होंने अपने आप को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया।

जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो क्रोधित शिव ने यज्ञ को नष्ट कर दिया और राजा दक्ष को मार डाला। इसके बाद भगवान शिव मां सती को अपने कंधे पर बिठाकर सम्पूर्ण भूमंडल पर विचरण करने लगे। भूमंडल को स्थिर रखने के लिए भगवान विष्णु ने पीछे से अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिस-जिस स्थान पर मां भगवती के शरीर के टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर शक्तिपीठ स्थापित हुए। पन्ना में मां के दाहिना पैर गिरा था, इस कारण इस शक्तिपीठ का नाम पद्मावती शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।

पन्ना की पद्मावती देवी, मैहर की शारदा माता और पबई की कलेही माता का चमत्कारिक त्रिकोण संबंध

पन्ना शक्तिपीठ और मैहर की शारदा माता का मंदिर और पबई की कालिका माता का मंदिर अपने आप में समानांतर त्रिकोण बनाते हैं। पन्ना से पबई की दूरी 45 किलोमीटर और पबई से मैहर की दूरी 45 किलोमीटर है यानि ये तीनों स्थानों की आपस में दूरी 45 किलोमीटर है। इस तरह ये तीनों देवी स्थान आपस में त्रिकोणीय समानांतर कोण बनाते हैं।
पन्ना के पद्मावती शक्तिपीठ पर देश-दुनिया से लोग दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर की ये भी खास बात है कि यहां गंगा जमुनी संस्कृति की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है। मंदिर में हर जाति, धर्म के लोग मां के चरणों में माथा टेकने आते हैं। बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग भी यहां कई मन्नत लेकर आते हैं।
नवरात्रि शुरू होते ही कन्या भोज शुरू हो जाता है भक्त प्रतिदिन मौजूद कन्याओं को श्रद्धा अनुसार दक्षिणा देकर भोज कराते हैं

ऐतिहासिक महत्व
925 ईसवी में आए तुर्क यात्री इबने कुरदान ने इस स्थान का अपने यात्रा अभिलेख में वर्णन किया है कालिंजर से आगे की यात्रा में लिखा कि परना एक स्थान है जहां गोंड राजाओं का राज्य है शहर की छोटी-छोटी गलियां है और वहां कुलपूज्य देवी मौजूद है साथ ही इस स्थान में एक शिलालेख भी मौजूद है जिसे मैं ब्राम्ही लिपि में कुछ लिखा गया है जो लोग आज पढ़कर नहीं समझ पाते संभवत इसी स्थान का महत्व या निर्माण का समय लिखा है

बिना परेशानी के आचार संहिता उल्लंघन की करें शिकायत,
सॉफ्टवेयर का नाम- cVIJIL
पहचान रहेगी गुप्त, 24 घंटे पर कार्यवाही
प्ले स्टोर से तुरंत होता है डाउनलोड
शराब पैसा प्रलोभन जैसी चीजें तत्काल पकड़वा सकते हैं
(शिवकुमार त्रिपाठी)

निर्वाचन आयोग ने पांच राज्यों में होने जा रहे चुनाव में निष्पक्ष मतदान कराने के लिए बड़ी तैयारियां शुरू की है इसी क्रम में चुनाव आयोग ने अपनी तीसरी आंख पैदा कर ली है भारत निर्वाचन आयोग इस तीसरी आंख के माध्यम से चुनाव में लगे अधिकारी कर्मचारी और चुनाव लड़ रहे राजनीतिक दल और उनके प्रतिनिधियों पर तीखी नजर रखेगा इसकी शिकायत के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है सीविजिल यानी cVIJIL नाम के इस सॉफ्टवेयर में कोई भी व्यक्ति किसी भी समय अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर शिकायत कर सकता है जैसे ही शिकायत होगी तुरंत निर्वाचन आयोग हरकत में आ जाएगा और इसकी पारदर्शिता बनाए रखने के लिए निर्धारित समय भी रखा गया है कि तत्काल उस पर कार्यवाही की जाएगी और शिकायतकर्ता की पहचान पूरी तरह से गुप्त रखी जाएगी बीते कुछ दिनों से प्ले स्टोर में मिलने वाला यह सॉफ्टवेयर तेजी से डाउनलोड किया जा रहा है हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी जानकारी अभी कम है जैसी जैसी जानकारी बढ़ेगी वैसे इस सॉफ्टवेयर का उपयोग भी और अधिक किया जाएगा

जिला निर्वाचन अधिकारी मनोज खत्री एवं पुलिस अधीक्षक विवेक सिंह ने आम लोगों से अपील की है की प्ले स्टोर में इस सॉफ्टवेयर को डाउनलोड कर कहीं भी हो रही आचार संहिता के उल्लंघन की प्रमाणिक शिकायत कर सकते हैं और इस पर तत्काल कार्यवाही भी होती है और इस सॉफ्टवेयर में की गई शिकायतों की मॉनिटरिंग सीधे निर्वाचन आयोग करता है

आचार संहिता उल्लंघन की तत्काल शिकायत के लिए गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें चुनाव आयोग का एप सी विजिल। इसमें 24 घण्टे में होगा निराकरण, पहचान रहेगी गोपनीय

टावर से नीचे गिरी महिलाएं ,
लाइव वीडियो

भोपाल में


दो दिन से अपना मानदेय बढ़ाने के लिए आंदोलन रत एक आशा कार्यकर्ता आज सीएम हाउस के सामने पालीटेक्निक चौराहा के वायरलेस टॉवर पर चढ़ गई जिसे बचाने के लिए चढ़े पुलिस बल की महिला कांस्टेबल और आशा कार्यकर्ता नीचे गिर पड़ीं | दोनो को तुरंत अस्पताल ले जाया गया
आप इस वीडियो में देखिए किस तरीके से महिलाएं टावर से नीचे गिरती हैं और अफरातफरी मच जाती है लाइव वीडियो

शेरों की मौत से देश में हड़कंप, अब तक 23 शेर मरे
सरिस्का और पन्ना में खत्म हो चुके है टाइगर
मध्यप्रदेश के पालपुर कूनो को गुजरात सरकार ने नहीं दिए शेर

आमतौर पर सामान्य व्यक्ति की भाषा में लोग बाघ और शेर को एक ही समझते है लेकिन बाघ यानी टाइगर सबसे ताकतवर जानवर जंगल का राजा होता है शेर यानी वह बब्बरी शेर जो भारतीय शेर है अपने परिवार और झुंड के साथ शांति से रहता है जो बहुतायत में गुजरात में पाए जाते हैं इन को विस्तार देने के लिए मध्य प्रदेश के पालपुर कूनो में बसाने की योजना थी पर गुजरात सरकार की हठधर्मिता के कारण शेरों को मध्यप्रदेश में नहीं बसाया गया वन्यजीव संस्थानों की समस्त अनुमति या मिलने के बाद भी गुजरात सरकार ने मध्यप्रदेश को शेर नहीं दिए अब उन्हीं शेरों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं यदि मध्य प्रदेश में यह शेर बसा दिए गए होते तो बहुत बड़ी चिंता या घबराहट नहीं होती

गुजरात स्थित गिर के जंगल में मंगलवार को दो और शेरों की मौत हो गई। इन मौतों के साथ ही गिर में 12 सितंबर के बाद शेरों की मौत की संख्या 23 पहुंच गई है। वन विभाग के अपर मुख्य सचिव राजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि मंगलवार सुबह दोनों शेरों को इन्फेक्शन के चलते बचाव गृह लाया गया था। जहां दोनों की मौत हो गई।
बता दें कि इसके पहले सोमवार को 7 और शेरों के शव मिले थे। अज्ञात वायरस के चलते 14 शेरों की मौत पहले ही हो चुकी थी। शेरों के एनआइवी सैंपल जांच के लिए पुणे भेजे गए हैं। एफएसएल की टीम भी जंगल का निरीक्षण कर रही है।
गुजरात के गिर में 21 पहुंची मृत शेरों की संख्या, जांच के लिए सैंपल पुणे भेजे गए
वनमंत्री गणपतसिंह वसावा ने पिछले दिनो ही जूनागढ़ के पास गिर का दौरा कर मृत शेरों के बारे में जानकारी हासिल की थी। चार शेरों में वायरस मिलने के बाद शेरों को संक्रमण से बचाने के लिए अमरीका से विशेष इंजेक्शन मंगाए जा रहे हैं।
शेरों की मौत की घटना के बाद करीब 550 वनकर्मियों की 140 टीमों ने 24 सितंबर से शेरों के निरीक्षण का काम शुरू किया था।
इस दौरान 600 शेरों में से 9 बीमार पाए गए, जिनमें से 4 का वहीं उपचार किया और 5 को उपचार के लिए बचाव गृह लाया गया था। यहां इलाज के दौरान मंगलवार को दो और की मौत हो गई।
अब आवश्यकता यह महसूस होने लगी है कि शीघ्र ही गुजरात के बाहर मध्य प्रदेश के पालपुर कूनो जैसी जगह में इन शेरों को स्थानांतरित किया जाए जिससे इनकी संख्या में वृद्धि तो होगी ही इनके अस्तित्व को जो खतरा पैदा हो रहा है उसे भी बचाया जा सकेगा

उम्मीद है सिरों को बचाने मध्यप्रदेश और गुजरात की भाजपा सरकार एक बार पुनः तारतम्य स्थापित कर पुनः शेर बसाने का प्रयास करेंगे

नन्हे हांथी बापू का जन्मोत्सव

जश्न के माहौल में कटा केक, स्कूली बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति

आपने इंसानों को जन्मदिन मनाते और पार्टियों में नाचते तो खूब देखा और सुना होगा पर मध्य प्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व में मंगलवार 2 अक्टूबर का दिन बेहद खास रहा। यहां पहली बार एक नन्हे हांथी का जन्म दिन अनोखे अंदाज और उत्साह के साथ मनाया गया।

एक वर्ष पूर्व पन्ना टाईगर रिजर्व की हंथिनी अनारकली ने इसी दिन नन्हे मेहमान को जन्म दिया था। खास दिन जन्मे इस मेहमान का नामकरण पार्क प्रबन्धन द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करते हुये बापू किया गया। नन्हे हांथी बापू का आज पहला जन्म दिवस था, जिसे पार्क प्रबन्धन ने अनूठे अंदाज में मनाकर
अविस्मरणीय बना दिया है। अब हांथी बापू का जन्म दिन हर वर्ष 2 अक्टूबर को इसी तरह धूमधाम से मनाया जायेगा। मालुम हो कि राष्ट्रीय पशु बाघ का
जन्म दिवस भी कुछ इसी अंदाज में प्रतिवर्ष यहां 16 अप्रैल को मनाया जाता है। इस तरह से हांथी व बाघ का जन्म दिन मनाने की परम्परा अन्यत्र कहीं नहीं है। आज के इस कार्यक्रम में स्कूली बच्चे बड़े ही उत्साह के
साथ शामिल हुये वहीं बड़ी संख्या में प्रशासनिक अधिकारी, न्यायधीशगण,जनप्रतिनिधि, पत्रकारगण, आमजन सहित पन्ना टाईगर रिजर्व का पूरा अमला
उपस्थित रहा।
हांथी बापू के जन्म दिवस का यह अनूठा कार्यक्रम पूर्व निर्धारित समय अनुसार सुबह 11 बजे से शुरू हुआ जो दो बजे तक चलता रहा। बापू के जन्मदिवस पर मेवायुक्त गुड का विशेष रूप से केक बनवाया गया था। जिसे पन्ना टाईगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया व उप संचालक वासु कन्नौजिया ने संयुक्त रूप से काटकर बापू को खिलाया। इसके पूर्व सभी अतिथियों ने मिलकर
बापू के माथे पर हल्दी व चावल का मिश्रित टीका लगाया। इस कार्यक्रम में विभिन्न स्कूल के बच्चों ने अपनी रंगारंग प्रस्तुतियां दीं। जिसमें विभिन्न वन्य प्राणियों के रूप में किरदार निभा रहे छात्र-छात्राओं ने अपनी प्रस्तुति देते हुये उपस्थित जनसमुदाय को यह संदेश भी दिया कि वन हैं तो वन्य प्राणी हैं और वन्य प्राणी है तो हम और आप हैं। कार्यक्रम में पद्मावती व लिस्यू आनंद विद्यालय के बच्चों जिनमें मानसी रिछारिया, अनन्या जैन ने कत्थक नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। वहीं कुछ बच्चों द्वारा वन्य जीवों पर आधारित कवितायें भी प्रस्तुत की गईं। भव्यतापूर्वक मने इस जन्मोत्सव में निश्चित रूप से आम लोगों व छात्र-छात्राओं में यह संदेश गया कि वन्य प्राणी भी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।जिनके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं हैं।

आकर्षक ढंग से सजा था हांथियों का कुनबा

जन्मोत्सव समारोह के विशेष अवसर पर पन्ना टाईगर रिजर्व के सभी हांथियों को आकर्षक ढंग से सजाया और संवारा गया था। सजे संवरे हांथियों के इस भरे पूरे कुनबे को एक साथ देखना निश्चित ही रोमांचकारी था। मालुम हो कि पन्ना टाईगर रिजर्व में हांथियों के इस कुनबे को जहां 100 वर्ष की उम्र पार कर चुकी दुनिया की सबसे बुजुर्ग हंथिनी वत्सला गौरवान्वित करती है वहीं इस
कुनबे में सबसे छोटा सदस्य हांथी बापू भी शामिल है। चंचल स्वभाव वाला यह नन्हा हांथी हर किसी को अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। हांथियों का यह कुनबा बेहद प्रसन्न और उत्साहित दिख रहा था। नाना प्रकार के फल व पकवान हांथियों के लिये रखे गये थे। बापू को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों यह सब देखकर वह खुशी से उछल रहा हो। समारोह में पहुंचे छात्र-छात्राओं व
अतिथियों ने हांथियों के साथ सेल्फी लेकर उत्सवी माहौल को कैमरे में कैद किया।

टाईगर रिवर्ज के अभिन्न अंग हैं हांथी: भदौरिया

पन्ना टाईगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया ने इस मौके पर कहा कि हांथी पार्क के अभिन्न अंग हैं। क्योंकि हांथी ही एक ऐसा वन्य प्राणी है जो हमें बाघों के पास तक ले जाता है जिससे बाघों की स्थिति व उनका
स्वास्थ्य परीक्षण करना आसान होता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर के ही दिन इस नन्हे हांथी का जन्म हुआ था। इसीलिये इसका नाम बापू रखा गया है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही
वन्य प्राणी संरक्षण सप्ताह 1 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक मनाया जाता है और यह उसी के बीच कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम का संचालन
मीना मिश्रा द्वारा किया गया व अतिथियों का आभार प्रदर्शन नरेश सिंह यादव डीएफओ उत्तर वनमण्डल द्वारा किया गया। जन्मोत्सव कार्यक्रम में न्यायाधीशगण, डीएफओ उत्तर वनमण्डल नरेश सिंह यादव, पन्ना टाईगर रिजर्व के संस्थापक सदस्य लोकेन्द्र सिंह, पन्ना टाईगर रिजर्व की उप संचालक वासु कन्नौजिया, दक्षिण वनमण्डल की डीएफओ मीना मिश्रा, डॉ. विजय परमार, बिन्नी राजा सहित पन्ना फ्रें ड्स क्लब के सदस्य, गणमान्य नागरिक, विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं सहित वन अधिकारी व कर्मचारीगण उपस्थित रहे।

धरम सागर तालाब में तर्पण शुरू,,
पितृ पक्ष में तर्पण का महत्व
सुबह से लगती है भीड़ , दोनों घाटों में तर्पण

(शिव कुमार त्रिपाठी)

पन्ना शहर के झीलनुमा तालाब धरमसागर पितृपक्ष शुरू होते ही आकर्षण का केंद्र बन गया है सुबह से ही नगर के लोग अपने पूर्वजों को तर्पण देने के लिए यहां पहुंचते हैं दोनों घाटों में सुबह 6:00 बजे से 10:00 बजे तक अपने पूर्वजों को तर्पण करते हैं सनातन हिंदू परंपरा के अनुसार पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों को याद कर तर्पण किया जाता है यही कारण है नगर के लोग तर्पण करने के लिए धरमसागर तालाब पहुंचते हैं और पवित्र स्नान करने के बाद तर्पण करते

कब से कब तक चलेगा पितृ पक्ष :-
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन पितृपक्ष (पितृ = पिता) के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं। पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं।
श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।

क्या है पितृ पक्ष का महत्व और क्यों करते हैं तर्पण:-

हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है प्रेत होती है। प्रिय के अतिरेक की अवस्था “प्रेत” है क्यों की आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अन्दर मोह, माया भूख और प्यास का अतिरेक होता है। सपिण्डन के बाद वह प्रेत, पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है।

पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।

पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। एवं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है।

भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।

पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है।

IAS के परिवार ने बाघों को घेरकर घंटों किया गया मनोरंजन,,

एसीएस के परिवार के मनोरंजन के लिए नियम विरुद्ध खोल दिए टाइगर रिजर्व के द्वार, घंटो आवभगत में लगा रहा पार्क प्रबंधन

(शिव कुमार त्रिपाठी)

बरसात के सीजन यानी मानसून सीजन में पन्ना टाइगर रिजर्व सहित प्रदेश के सभी पार्क 1 जुलाई से 30 सितंबर तक भ्रमण के लिए पूरी तरह से बंद रहते हैं बाघ दर्शन हो या जंगल भृमण किसी को पार्क के अंदर जाने की अनुमति नहीं रहती सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण और एनजीटी के स्पष्ट आदेश और निर्देश है कि किसी के मनोरंजन के लिए वन्य प्राणियों की निजता के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाएगा लेकिन लगता है कि पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन के सामने सभी नियम बोने पड़ जाते हैं तभी तो पन्ना टाइगर रिजर्व के आला अधिकारियों ने एसीएस के परिवार को खुश करने सभी नियम ताक पर रख दिए और हाथी में बैठा कर खूब मनोरंजन कराया
घटना 15 सितंबर 2018 की है जब वन विभाग के एसीएस ए के सिंह पन्ना आए और खजुराहो मैं परिवार सहित रुके इसके उनके साथ दो बच्चे और 3 महिलाओं का परिवार भी था सुबह जंगल सफारी में टाइगर रिजर्व पहुंचे मडला गेट से प्रवेश करने के बाद भ्रमण करते हुए हिनौता रेंज पहुंचे और जब टाइगर का दीदार नहीं हुआ तो पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने पन्ना रेंज की कटारी में हाथियों से घेरकर टाईगर पी-141 को दिखाया गया बहुत देर तक सभी लोग इससे मनोरंजन करते रहे जानकारी के अनुसार पहले से ही इस बाघिन को घेर कर रखा गया था एसीएस परिवार के मनोरंजन के लिए सुबह से ही बाघों को घेरा गया इसके बाद एसीएस का परिवार गणेश और रूपकली हाथी में सवार होकर बाघ दर्शन करता रहा इनके साथ फील्ड डायरेक्टर KS भदोरिया भी थे इस दौरान बरसात के सीजन में जिस तरीके से टाइगर रिजर्व के अंदर भ्रमण की गतिविधियों को रोका गया है इसके बावजूद टाइगर रिजर्व प्रबंधन के अधिकारियों ने स्वयं उपस्थित होकर मनोरंजन के लिए बाघों को खदेड़ा और बैठाकर बाघ दर्शन कराएं जानकार इसे नियम विरुद्ध बता रहे हैं कहां किसी भी अधिकारी के परिवार के लिए इस तरीके से बाघों की निजता के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए

टाइगर शो गलत :- दीक्षित
इस घटना के बाद वन्य प्राणियों की जानकारी और वाइल्ड लाइफ में गहरी रुचि रखने वाले अधिवक्ता राजेश दीक्षित ने कहा कि टाइगर शो किसी भी तरीके से करना नियम विरुद्ध है और किसी के परिवार के लिए इस तरीके से टाइगर को घेर कर दिखाया जाना गलत है और नियमों का उल्लंघन है टाइगर रिजर्व प्रबंधन को इस तरह के कार्यों से बचना चाहिए

इस संबंध में जब टाइगर रिजर्व प्रबंधन से बात करने का प्रयास किया गया तो फिर डायरेक्टर KS भदोरिया का मोबाइल बंद था पता चला कि वह देहरादून ट्रेनिंग में गए हैं डिप्टी डायरेक्टर श्रीमती बासु कनौजिया ने फोन पर कहा कि मॉनसून सीजन में सभी के लिए पार्क पूरी तरीके से बंद रहता है उस दिन में ऑफिशियल काम से जबलपुर गई थी इसलिए इस मामले में मैं कुछ नहीं कह सकती फील्ड डायरेक्टर ही कुछ बता सकते हैं
जो टाइगर रिजर्व का मैदानी अमला है वह घेरकर बाघ देखे जाने और हाथी में सवारी की पुष्टि करता है लेकिन कहता है कि हम प्रतिक्रिया नहीं दे सकते जेडी श्री सक्सेना ने कहा कि इस मामले में प्रतिक्रिया देने के लिए अधिकृत नहीं है और पन्ना रेंज ऑफिसर राजकुमार कहते हैं कि मैं उस दिन उपस्थित नहीं था विडंबना इस बात की है कि जब इस तरीके से बाघों के मामले में टाइगर रिजर्व में खिलवाड़ होगा आखिर कब तक पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ बचेंगे

पहले भी हो चुकी है ऐसी घटनाएं
टाइगर रिजर्व प्रबंधन बाघों के साथ खिलवाड़ पहले से ही करता चला आ रहा है सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने भले ही चाहे जितने सख्त आदेश और निर्देश दिए हो पर पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन इनके साथ खिलवाड़ ही करता है इसके पूर्व तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के मनोरंजन के लिए बाघ को बेहोश किया गया था और पूरे टाइम मंत्री हाथी पर सवार रही और इसका वीडियो सामने आने के बाद टाइगर रिजर्व प्रबंधन की पूरे देश में खूब किरकिरी हुई थी इतना ही नहीं इसके पूर्व तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव IAS प्रवीर कृष्ण के परिवार के मनोरंजन के लिए इसी तरह घेरकर बाघ दर्शन कराए गए थे और समय-समय पर यह मामला उठता रहा है वाइल्ड लाइफ से जुड़े लोग इस तरह की गतिविधियों का विरोध भी करते हैं पर लगता है टाइगर रिजर्व प्रबंधन सुधरने का नाम नहीं ले रहा

गायब हो चुके हैं पूरे बाघ
2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व के सभी टाइगर खत्म हो गए थे बाघ बिहीन होने के बाद सरकार के प्रयास और स्थानीय लोगों के सहयोग के बाद बाघ पुनर्स्थापना योजना सफल हुई है अब 35 से अधिक टाइगर पन्ना टाइगर रिजर्व और लैंडस्केप में भ्रमण करते हैं लेकिन जिस तरीके से टाइगर रिजर्व प्रबंधन ही लापरवाही पूर्वक काम कर रहा है तो यह बाघ कब तक बचेंगे यह एक गंभीर चिंता का विषय है इस पर टाइगर रिजर्व से जुड़े बड़े अधिकारियों को गंभीरता से कार्यवाही करनी होगी और ऐसी अनैतिक गतिविधियों पर अंकुश लगाना होगा जब वन विभाग का इतना बड़ा अधिकारी ही इस तरीके की अनैतिक गतिविधियों में शामिल हो तो यह मामला और भी गंभीर हो जाता है


पन्ना की एक खेत में मज़दूर किसान प्रकाश शर्मा को खुदाई के दौरान एक बेशकीमती हीरा मिला है 12.58 कैरेट का यह खूबसूरत हीरा लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है जिसे हीरा कार्यालय में जमा कराया गया अब नीलामी के बाद जो पैसे मिलेंगे टीडीएस और रॉयल्टी कर कर संपूर्ण राशि शर्मा को दे दी जाएगी एक छोटा सा नग मिलने से मजदूर किसान की रातोंरात किस्मत चमक गई