
✎ शिव कुमार त्रिपाठी
बधाई देने तक सीमित न रहे पर्यावरण दिवस,,
( शिवकुमार त्रिपाठी) आज पूरी दुनिया पर्यावरण दिवस मना रही है 1972 में पर्यावरण के महत्व को समझा और उसे बचाने की प्रयास शुरू किए गए पर भारतीय संस्कृति पुरातन समय से ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती रही है यही कारण है कि हिंदू धर्म में वृक्ष को देवता के समान माना गया है कई त्योहारों में वृक्षों की पूजा की जाती है बट सावित्री में बरगद की पूजा, अक्षय तृतीया ऑवला के पेड़ की पूजा , हरछठ मैं पलाश और बेरी के पेड़ की पूजा जैसे यह त्यौहार है जिनमें वृक्षों की ही पूजा की जाती है और इन्हीं के आशीर्वाद से सुखद जीवन और समृद्धि की कल्पना लोग करते हैं लेकिन जिस तरीके से भौतिकवादी सोच और बलात दोहन ने पर्यावरण को क्षति पहुंचाई है अब बेहद खतरनाक स्थितियां निर्मित हो रही है ग्लोबल वार्मिंग , प्राकृतिक आपदाओं , बढ़ते तापमान जैसी घटनाएं तो सामने दिख ही रही है पृथ्वी में ऐसी हल चल होती हैं जो चिंताजनक है लेकिन यदि भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन पद्धति को लोग अपना ले तो पर्यावरण को संरक्षित ही नहीं स्वच्छ बनाकर चिंरजीवी किया जा सकता है भौतिक सुख सुविधाओं और लग्जरी सोच ने पर्यावरण पर कुठाराघात किया है आज फेसबुक, व्हाट्सएप , टि्वटर के माध्यम से लोग पर्यावरण दिवस की बधाइयां दे रहे हैं यह मात्र 5 जून तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए अगर सुखमय जीवन जीना है तो पृथ्वी, नदी , जल , पेड़ सभी को स्वच्छ बनाना होगा और हर व्यक्ति को स्वयं की जिम्मेदारी का एहसास करना होगा
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पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में कई वैधानिक संस्थानो का निर्माण किया गया है जिसमें सरकार करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष खर्च करती है पर इन संस्थाओं पर बैठे जिम्मेदार लोग अपने मूल कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे यही कारण है की नदियों में बढ़ते प्रदूषण , रेत का अवैध उत्खनन , पेड़ों की कटाई , अवैध खनन तमाम मामले सामने आने के बावजूद इन संस्थाओं द्वारा कोई कठोर कदम नहीं उठाए जाते इस कारण पर्यावरण और अधिक क्षति होती हैं नदियां सूख रही है धरती बंजर होती जा रही पर्यावरण संरक्षण संस्थाएं शांत दिख रही है
पूजनीय बट वृक्ष के सामने
भारतीय हिंदू संस्कृति में पीपल बरगद जैसे पेडो की लकड़ियां आज भी लोग नहीं काटते न ही जलाऊ में इसका उपयोग करते हैं मतलब साफ है कि हिंदू संस्कृति पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार रही है अब लोगों को स्वयं की जिम्मेदारी का एहसास भी करना होगा तभी सच्चे मायने में पर्यावरण दिवस की सफलता होगी
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अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है जो प्रत्येक वर्ष 5 जून को, विश्वभर में पर्यावरण के नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है। इस अभियान की शुरुआत करने का उद्देश्य वातावरण की स्थितियों पर ध्यान केन्द्रित करने और हमारे ग्रह पृथ्वी के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव का भाग बनने के लिए लोगों को प्रेरित करना है।
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विश्व पर्यावरण दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा मानव पर्यावरण के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अवसर पर 1972 में हुई थी। हालांकि, यह अभियान सबसे पहले 5 जून 1973 को मनाया गया। यह प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है और इसका कार्यक्रम विशेषरुप से, संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किए गए वार्षिक विषय पर आधारित होता है। 1987 में इसके केंद्र को बदलते रहने का सुझाव सामने आया और उसके बाद से ही इसके आयोजन के लिए अलग अलग देशों को चुना जाता है। इसमें हर साल 143 से अधिक देश हिस्सा लेते हैं और इसमें कई सरकारी, सामाजिक और व्यावसायिक लोग पर्यावरण की सुरक्षा, समस्या आदि विषय पर बात करते हैं