✎ शिव कुमार त्रिपाठी
*शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण बने सुनहरे भविष्य का आधार
*रेत के अवैध उत्खनन से संकट में है केन नदी का वजूद
*अनियंत्रित और अवैध उत्खनन से हो रही पर्यावरण को अपूर्णीय क्षति
पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले को प्रकृति ने अनमोल सौगातों से नवाजा है। लेकिन प्रकृति प्रदत्त इन सौगातों का जनहित व जिले के विकास में रचनात्मक उपयोग करने के बजाय निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर हमने यहां की खनिज व वन सम्पदा का बेरहमी के साथ सिर्फ दोहन किया है। बड़े पैमाने पर रेत के हो रहे अवैध उत्खनन से केन नदी का सीना जहां छलनी हो रहा है, वहीं जिले का खूबसूरत समृद्ध वन क्षेत्र भी तेजी के साथ उजड़ रहा है। इन हालातों के चलते केन किनारे के ग्रामों में जल का स्तर जहां नीचे खिसकने लगा है वहीं पर्यावरण बिगडऩे से कई तरह की समस्यायें उत्पन्न हो
रही हैं। इस जिले की भौगोलिक स्थिति को देखते हुये समृद्धि और खुशहाली का रास्ता अवैध उत्खनन से नहीं अपितु शिक्षा के विकास व पर्यावरण संरक्षण से
ही निकल सकता है। शिक्षा के आलोक से ही इस पिछड़े जिले के नौनिहालों का भविष्य संवारा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले की प्राकृतिक खूबियां जो इस जिले के लिए वरदान साबित हो सकती थीं, अपने निहित स्वार्थों के चलते खनन माफियाओं ने इन खूबियों को अभिशाप में तब्दील कर दिया है। सक्षम और योग्य नेतृत्व के अभाव में इस क्षेत्र के हितों को हमेशा नजरअंदाज किया गया है। मालुम हो कि पन्ना जिले की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि, यहां के समृद्ध जंगल व बेहतर
पर्यावरण को दृष्टिगत रखते हुये जिले के विचारशील लोगों द्वारा यह माँग रखी गई थी कि पन्ना को कोटा की तर्ज पर शिक्षा का हब बनाया जाये तथा पर्यटन के विकास हेतु प्रभावी और कारगर पहल की जाये। ऐसा करने से जहां रोजगार के नये अवसरों का सृजन होगा वहीं पर्यावरण की भी सुरक्षा होगी।
पन्ना की जीवनरेखा है केन नदी
सात पहाडों का सीना चीरकर प्रवाहित होने वाली केन नदी को पन्ना जिले की जीवन रेखा कहा जाता है। तमाम तरह की विशिष्टताओं व रहस्यों से परिपूर्ण केन नदी म.प्र. की एक मात्र ऐसी नदी है जो प्रदूषण से मुक्त है। यह अनूठी नदी अपने प्रवाह क्षेत्र में पत्थरों पर चित्रकारी करते हुये बहती है। चित्रकारी वाले इन पत्थरों को बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लोग शजर कहते हैं। उल्लेखनीय है कि शजर एक अनोखा पत्थर होता है, ऊपर से बदरंग दिखने वाले इस पत्थर को जब मशीन में तराशते हैं तो इसमें झाडिय़ों, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, मानव और जलधारा के विभिन्न रंगीन चित्र देखने को मिलते
हैं। आकर्षक चित्रकारी वाला यह पत्थर पन्ना जिले के अजयगढ़ कस्बे से लेकर उ.प्र. में बांदा जिले के कनवारा गांव तक पाया जाता है। पन्ना जिले में पण्डवन नामक स्थान में केन नदी का अद्भुत नजारा देखते ही बनता है। इस जगह पर पतने, व्यारमा व मिढ़ासन सहित पांच नदियां केन में मिलती हैं। नदियों के इस संगम में पत्थरों की विस्मय बिमुग्ध कर देने वाली आकृतियां नजर आती
हैं।
बदल रहा है केन का नैसर्गिक स्वभाव
केन नदी के कंचन जल में मगर व घडियाल जैसे सरीसृप व विभिन्न प्रजाति की मछलियां पाई जाती हैं, वहीं जंगल में विचरण करने वाले शाकाहारी व मांसाहारी वन्य प्रांणियों की जिन्दगी का भी यह नदी आधार है। केन नदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह घने जंगलों व पहाडों से होकर प्रवाहित होती है, फलस्वरूप यह नदी प्रदूषण से मुक्त है। इसकी वजह यह है कि केन
नदी का प्रवाह क्षेत्र मानव आबादी से दूर है। लेकिन अब बढ़ती आबादी के साथ-साथ इस नदी पर भी खतरा मंडराने लगा है। बालू के अवैध व अनियंत्रित
उत्खनन से नदी के नैसर्गिक स्वभाव में बदलाव आना शुरू हो गया है। बालू की अत्यधिक निकासी से जल स्तर तेजी से जहां गिर रहा है वहीं नदी किनारे के
ग्रामों में भी जल संकट की आहट सुनाई देने लगी है। पर्यावरण से जुड़े लोगों का कहना है कि केन नदी से बड़े पैमाने पर हो रहे रेत के उत्खनन से घडिय़ालों का वजूद जहां संकट में पड़ सकता है, वहीं केन नदी की खूबी भी
तिरोहित हो सकती है। इसलिये समय रहते अवैध उत्खनन व पर्यावरण के साथ होने वाले खिलवाड़ पर प्रभावी रोक लगाया जाना चाहिये ताकि केन अपने प्राकृतिक स्वरूप में प्रवाहित होती रहे।