✎ शिव कुमार त्रिपाठी
कहानी बाघों की:- बुंदेलखंड की धरती फिर हुई आवाद
विलुप्त हो गया है बुंदेली खंड का जींस
बाघों के खात्मे के लिए बदनाम रहा है पन्ना
पर्यटन की रीढ़ है पन्ना टाइगर रिजर्व
पन्ना की धरती का बाग देश दुनिया में प्रसिद्ध रहा है बुंदेली जींस पूल के बाद ताकतवर और क्षमता वान माने जाते हैं सदानीरा केन की किनारे बाघों की मजबूत दुनिया बसती थी लेकिन प्रकृति के दुश्मनों की ऐसी नजर लगी कि पूरे भाग गायब हो गए सरकार की कड़ी मेहनत और स्थानीय लोगों के लगाव के कारण एक बार फिर बाघों से पन्ना आबाद है पर बीते कुछ दिनों से जो मामले सामने आ रहे हैं बाघों की दुनिया फिर खतरे में बताई जा रही है आसपास के क्षेत्रों में परंपरागत शिकारी बहेलिया समुदाय के लोग सक्रिय है जो बड़ा नुकसान कर सकते हैं
बुन्देलखण्ड क्षेत्र का यह इलाका प्रकृति के अनगिनत सौगातों से समृद्ध रहा है। आजादी से पूर्व राजाशाही जमाने में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के घने जंगलों में 5 सौ से भी अधिक बाघ स्वच्छन्द रूप से विचरण करते रहे हैं, यही वजह है कि इस इलाके को बाघों की धरती भी कहा जाता रहा है। लेकिन आजादी के बाद तेजी के साथ मानव आबादी बढ़ी और जंगल सिकुड़ते चले गये। नतीजतन बाघों के प्राकृतिक रहवास उजडऩे लगे और इस शानदार वन्यजीव की संख्या भी घटने लगी। हमेशा बाघों से आबाद रहे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के इस इलाके को वर्ष 2009 में तब गहरा झटका लगा जब इस तथ्य का खुलासा हुआ कि पन्ना बाघ अभ्यारण्य में अब एक भी बाघ नहीं बचा। इस खुलासे के बाद पूरे देश में हड़कम्प मच गया। तब आनन-फानन सरकार द्वारा पन्ना में बाघ पुनस्र्थापना योजना शुरू करने का निर्णय लिया गया। इसी के साथ ऐसे वन अधिकारी की खोजबीन भी शुरू हुई जिसमें वह काबिलियत और क्षमता हो जो पन्ना की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस ला सके। ऐसी विपरीत और विकट परिस्थितियों में आर. श्रीनिवास मूर्ति को पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को मूर्त रूप देने की जवाबदारी सौंपी गई।
किसी को नहीं थी सफलता की उम्मीद
बाघ पुनर्स्थापना योजना के शुरू होने पर किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि बाहर से बाघों को यहां लाकर उनके कुनवे को बढ़ाने में सफलता मिलेगी। हर तरफ आक्रोश और विरोध का माहौल था, ऐसे विपरीत माहौल में कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच से बाघों को पन्ना लाया गया। बेहद साधारण से दिखने वाले आर. श्रीनिवास मूर्ति ने बाघों को पन्ना में फिर से बसाने के लिये खुद भी जंगल को अपना बसेरा बना लिया और जुनून की हद तक बाघों को आबाद करने के काम में जुट गये। बाघों के लिये अनुकूल और सुरक्षित वातावरण बनाने के लिये उन्होंने कड़े कदम भी उठाये और कई प्रभावशाली लोगों को जेल तक पहुँचा दिया। बाघों के प्रति उनका सम्मान तथा लगन और मेहनत को देख कुछ लोग मूर्ति जी से प्रभावित हुये तथा उनके कार्य में सहभागी भी बने। धीरे-धीरे समर्थन और सहयोग करने वालों का कारवां बढऩे लगा नतीजतन पन्ना में यह नारा दिया गया जन समर्थन से बाघ संरक्षण, जिसका चमत्कारिक असर हुआ।
जनता का समर्थन
जन समर्थन से बाघ संरक्षण का नारा इतना प्रभावी और कारगर हुआ कि छोटे-छोटे स्कूली बच्चे भी बाघ संरक्षण की मुहिम से जुडऩे लगे। इस बीच कान्हा और बान्धवगढ़ से आई बाघिनों ने नन्हे शावकों को जन्म देकर वीरान से पड़े पन्ना टाईगर रिजर्व को फिर से गुलजार कर दिया। फिर तो सफलता की नित नई ऊँचाईयों को बाघ पुनर्स्थापना योजना छूने लगी। इस योजना के तहत यहां पर अनाथ और पालतू बाघिनों को जंगली बनाने का करिश्मा भी घटित हुआ, जिससे पन्ना पार्क विश्व स्तर पर चर्चित हो गया। बीते 7 वर्षों में पन्ना टाईगर रिजर्व में 55 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हो चुका है। पन्ना में जन्मे बाघ अब बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड के अलावा अन्य इलाकों में भी विचरण कर रहे हैं।
ग्रामीणों ने चुकाई बड़ी कीमत, अभाव में जीने को मजबूर
पन्ना टाइगर रिजर्व के चारों और रहने वाले ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को सरकार की योजनाओं का लाभ इसलिए नहीं मिल पाता क्योंकि आसपास टाइगर रिजर्व बसा हुआ है तमाम नियम कायदों में उलझा कर यहां का उद्योग चौपट कर दिया गया है लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर पाते तमाम कष्टों के बावजूद दिल में पत्थर रखकर बाग का संरक्षण करते हैं इसके लिए भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है बिना समर्थन और ग्राम पंचायतों के प्रस्ताव के बड़े क्षेत्र में बफर जोन घोषित कर दिया गया इसके लिए नियम कायदों की भी परवाह नहीं की गई विरोध हुआ सरकार के निर्देशों का पालन भी नहीं हुआ और बफर जोन बना दिया गया अभी टाइगर रिजर्व के कारण पूरे इलाके का विकास प्रभावित है इसके बावजूद यहां के लोग बाघों से प्रेम करते हैं आर्थिक तंगी में जीवन यापन करने के बावजूद जंगल और बाघ चाहते हैं पर जिस तरीके से खतरा मंडरा रहा है उससे पन्ना में दोहरी मार पड़ने की उम्मीद है पन्ना टाइगर रिजर्व से लगी सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों को भारी अभाव में जीवन यापन करना पड़ता है